काहे के बड़े हैं,
अगर दही में पड़े हैं।
सत्ता को लालायित भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बारे में यह काफी सटीक वचन हैं। सत्ता से विछोह के बाद से उपरी तौर पर सुगठित दिखने वाले संगठन की अंदरूनी दरारें तो खैर काफी दिनों से नज़र आ ही रही थीं। सुषमा स्वराज, प्रमोद महाजन, उमा भारती जैसे अनेकों टकटकी लगाये बैठे रहे हैं की पार्टी में उनका कुछ दबदबा कायम हो। राजनीति के पानी की सचाई यही है कि जो नेता मुखरित रूप से सतह पर नज़र आते हैं उनका वज़न वैज्ञानिक नियमों के तहत हल्का ही होता है। जिन्ना की तारीफ में कसीदे पढ़ने के बाद से ही आडवाणी का सिंहासन डोल उठा था, खुराना जैसे लोग इस फ़िराक में थे कि इसी तेज़ कैटरियानी बयार की ओट में अपना उल्लू सीधा हो जाय तो अच्छा। खुराना और उमा जैसे नेताओं का पार्टी में आधार ठीकठाक है पर समय समय पर पार्टी इनसे कर्त्तव्य पालन के नाम पर बलिदान भी मांगती रही है, उमा को मध्यप्रदेश का ताज़ सौंपना पड़ा गौर को तो खुराना भी हाशिये पर आने को मजबूर हुए। कल वाजपेयी और आडवाणी के मनमुटाव का फायदा ले कर बचने की सोच रहे खुराना के राजनैतिक करियर की ताबूत में आखिरकार अंतिम कील जड़ ही दी गई, हालांकि काँग्रेस शायद जल्द ही प्राणवायु पुनः फूंकने का प्रयास करे। खुराना के खुर कतरने के पीछे पार्टी का साफ संकेत यहः की पंगा ना लै मेरे नाल।
वाजपेयी के हालिया राजनैतिक चुप्पी से उपजते मोहभंग के शब्द से मेरा यह विचार बना था कि चलो शायद भाजपा इस बारे में राजनैतिक अपवाद बने और शीर्ष नेता ससम्मान पदत्याग कर नये लोगों को, खास तौर पर पुराने मोहरों को, आगे आने का मौका दें। पार्टी की सेहत की ज़मीन के लिये भी यह गुड़ाई अच्छी होती, नीचे की उपजाउ ज़मीन उपर आती और खरपतवार भी साफ होते। पर परिणाम में फिर वही ढाक के तीन पात! फिर वही पॉवर स्ट्रगल, वही पुरानी लड़ाई वर्चस्व की। अरे भैये, ८५-९० पार कर लिये आपने, जाने कब बुलावा आ जाय, जितनी इज़्जत और पैसा बनाना था सो तो बना ही लिया होगा, अब तो छोड़ो मोह। पद पर रह कर भी क्या रहे हो? क्या अगले चुनाव की ज़मीनी तैयारी है? क्या सहयोगी दल से अभी भी यारी है? इन दलों की छोड़ो, क्या संघ और शिव सेना अब भी मन के मीत हैं? क्या संगठन की मजबूती भीत है? हर रोज़ तो आप लोग बयान बदलते हो, दोनों शीर्ष नेताओं में ही नहीं पट रही। फिर काहे के बड़े हो? सचाई का सामना करो, उम्र का लिहाज़ करो, सचमुच बड़ा बने रहना है तो बड़ा निर्णय तो लेना ही होगा।
5 comments:
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खुरानाजी ने बिना शर्त माफी मांग ली है और पार्टी मे वापीस हो गये हैं.
वैसे इसमे नया क्या है ? किस्सा वही पूराना है, जो मन मे आये बक दो, बाद मे या तो पलट जावो या कह माफी मांग लो. उमा भारती वापिस आ चुकी है, कल्याणसिंह आ चुके हैं.
"कैटरियानी बयार...?"
बढ़िया है। क्या इस शब्द का मूल दक्षिण यूऍस में आया "कटरीना" नामक समुद्री तूफान है?
Debu da janmdin ki bahut bahut badhai.....vajpeyi ji sun lo kahe ke bare ho agar dahi me pare ho.....
आशीषः सही कहा आपने। यही लेख किसी और मौके पर भी फिट बैठेगा, हमारी राजनीति के अखाड़े में वही पुरना दांव पेंच ही चलते हैं, बस पहलवान बदल जाते हैं।
रमणः आपका अंदाज़ा सोलह आने सही है।
तरुणः शुक्रिया!
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