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Thursday, February 26, 2004

वनवास से वापसी

तकरीबन ३ सप्ताह के ब्लॉग वनवास के बाद वापसी हो रही है। अभी पूर्ण रूप से मन भी नहीं बन पा रहा है। सब नया सा लग रहा है। १२ फरवरी को मेरी माताजी के पेट के अल्सर की शल्यक्रिया की गई। सब ठीक रहा, वो अब घर आ गईं हैं। सुखद बात ये रही कि एक ही चरण में ये शल्यक्रिया हो गई, सर्जन पहले इसे दो चरणों में करने वाले थे, तीन माह पश्चात एक शल्यक्रिया और होती, ईश्वर की कृपा से वह टल गया। किसी भी शल्यक्रिया में डर तो रहता ही है, माँ की उम्र व स्वास्थ्य के लिहाज़ से खतरा ज़रा ज्यादा था।

हिन्दी चिट्ठों कि दुनिया में इस बीच काफी हलचल हुई है लगता है। देखना है अपना मूड कब कब तक बन पाता है।

Thursday, February 05, 2004

पहला संस्कृत चिट्ठा

अत्यंत हर्ष की बात है कि चिट्ठों की दुनिया में पहला संस्कृत चिट्ठा जसमीत ने कौटिल्य उपनाम से लिखना प्रारंभ किया है। अहो भाग्यम्! आशा है वे नियमित रूप से लिखेंगे।

Wednesday, February 04, 2004

मेहमान का चिट्ठा: चारू

बाल मजदूरी और हम

एक सीधा‍ सादा सवाल करती हुँ, बाल मजदूरी क्या है? ज़रा इस व्यक्तव्य पर नज़र डालें...

विश्व में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में हैं, विश्वस्त अनुमानों के अनुसार भारत में बाल मजदुरों की संख्या ६ से ११.५ करोड़ के बीच है। शिवकाशी के पटाखा कारखानों में, बीड़ी और कालीन बनाने वाले, पत्थर के खदानों और धान के खेतों में कमरतोड़ मेहनत करने वाले बच्चों के बारे में तो सबने सुना है लेकिन उन बच्चों के बारे में कोई चर्चा नहीं होती जो आपके और मेरे घरों में काम करते हैं।

मुम्बई में मेरे घर काम करने वाली बाई हर रोज़ अपनी १३ साल की बेटी को अपने साथ लाती है। पहले पहल तो मुझे लगा कि शायद वो बच्ची को सिर्फ अपने संगत में रखना चाहती है, पर धीरे‍ धीरे उसने छोटे मोटे काम भी करना शुरू कर दिया। पहले पोंछा लगाने लगी, और अब हाल ये है कि वो अपनी माँ से १५ मिनट पहले आ कर काम शुरू कर देती है ताकि उसे आसानी हो। जब मैंने प्रतिरोध किया तो माँ का जवाब था, "दीदी, वो तो सिर्फ मेरे काम में हाथ बंटा रही है"। "..कल से उसे घर छोड़ कर आना", मैंने कहा। इस पर बाई का जवाब था, "उसे घर पर कैसे छोड़ सकतीं हूँ दीदी, वो तो अभी इत्ती छोटी है.."

देखा जाए तो मेरी बाई गरीब नहीं है। अपने मर्द के साथ मिल कर अच्छा खासा कमा लेती है, घर में टीवी है, बच्ची को स्कूल भी भेजती है। कहने का मतलब ये कि बच्ची का कहीं कोई शोषण नहीं हो रहा, ना ही अत्यधिक गरीबी की वजह से उसे काम करना पड़ रहा है...मुस्करा के काम करती है बिल्कुल जैसे मैं अपनी माँ की रसोईघर में मदद करती।

ये बच्ची स्कूल जाती है, अभी आठवीं कक्षा में है। क्या यह बच्ची अपने अधिकारों से वंचित है? क्या इसे बाल मजदूरी मान जाए? क्या इसमें मेरा भी दोष है? अगर हाँ तो इसका हल क्या है? क्या मैं अपनी बाई पर जोर डालूं कि वह अपनी बेटी को अपने साथ न लाए? पर क्या मैं उसे दूसरे घरों में काम करने से रोक पाउंगी? या फिर मैं इसे स्वीकार कर उसका काम और जीवन जितना हो सके उतना आसान बना दूं? दरअसल अभी तो मैं यही कर पाती हूं...पर...बाल मजदूरी का अंत फिर कैसे होगा?

"मेहमान का चिट्ठा" नुक्ता चीनी का पाक्षिक आकर्षण होगा। इस पक्ष की मेहमान मेरी मित्र श्रीमती चारुकेसी हैं। हाल ही में मुम्बई में बसीं चारु अपने अंग्रेज़ी चिट्ठे ए टाईम टू रिफ्लेक्ट में मुख्यतः सामाजिक और विकास के मुद्दों पर लिखती हैं।

Tuesday, February 03, 2004

क्या वोट डालना अनिवार्य कर देना चाहिए?

आज के दैनिक भास्कर में मनोहर पुरी ने अपने एक लेख* में एक महत्वपूर्ण बिंदू पर चर्चा की है। क्या वोट डालना अनिवार्य कर देना चाहिए? हालांकि लेखक के इस तर्क से मैं कतई सहमत नहीं कि वोट न डालने वालों को सरकार के कलापों पर नुक्ता चीनी का हक नहीं होना चाहिए पर हाँ जनतंत्र में अधिकारों के साथ कर्त्तव्यों को भी समान महत्व मिलना चाहिए।

वोट डालना अनिवार्य कर देना कई मामलों मे हम नागरिकों के लिए रामबाण औषधी सिद्ध हो सकती है। हो सकता है त्रिशंकू सरकारों से इसके द्वारा मुक्ति मिल सके। मतदान प्रतिशत बढेगा तो चुनाव प्रक्रिया अधिक सटीक हो सकेगी।

पर यह भी सच है कि हमारे देश में, जहाँ नागरिक चेतना (सिविक सेन्स) का नितांत अभाव है, वहां बिना शास्ती का डर दिखाए कोई नियम लागू नहीं किया जा सकता। वोट डालना अनिवार्य कर देने की घोषणा मात्र से कुछ नहीं होगा, उसका हश्र तो फिर पल्स पोलियो अभियान जैसा हो जाएगा। अगर मेरा नियोक्ता कहे कि वोट न डालने की स्थिति में वो मेरा दो दिन का वेतन काट लेगा तो बात मुझे सरलता से समझ आएगी। पुरी ने यह भी अच्छा सुझाव दिया है कि मतदानोपरांत अधिकारी हर मतदाता को एक पावती या प्रमाणपत्र दे सकता है जो इस बात की पुष्टि करेगा कि उसने वाकई मतदान किया है।

मेरे विचार मैं तो केवल मतदान और प्राथमिक शिक्षा ही नहीं बल्कि निम्नलिखित चीज़ों को भी अनिवार्य नागरिक कर्त्तव्यों में शुमार करना चाहिएः

  • अमेरिकी सोशियल सिक्युरिटी की तर्ज पर देश भर में मान्य परिचय‍ पत्र जिससे पासपोर्ट, राशन कार्ड, वोटर परिचय‍ कार्ड जैसे पच्चीसों गैरज़रुरी कागजो की जरुरत ना हो।
  • अनिवार्य एड्स परीक्षण, जिसके परिणाम को उपरोक्त परिचय‍ पत्र की दर्ज जानकारियों में शुमार किया जाए।

विचार तो अच्छे हैं पर बिल्ली के गले घंटी कौन बांधेगा?

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* स्थाई लिंक नहीं