सुषमा सवराज मय पतिदेव राज्य सभा से पलायन करना चाहती हैं। वे भाजपा के राजनीति के WWF में एक विदेशी से पटखनी खाने के बाद से बेचैनी महसूस कर रहीं थी। अंबिका सोनी ने चुटकी ली, "अरे परवाह कौन करता है, वैसे भी श्रीमान स्वराज के मेम्बरशिप के दो ही महीने बचे हैं।" दरअसल सारी नाराजगी वाजपेयी से है। सुषमा और उमा भारती जैसे कर्मठ (कट्टर पढ़ें) भाजपाई संघ की तरह ये मानते हैं भाजपा के हिंदूवादी तेवर नरम करने से ही बेड़ा गर्क हुआ। वाजपेयी का राजनीतिक सन्यास तो तय ही है, विहिप और तोगड़िया भी किसी भी एक्स वाई जेड को उनकी जगह देने के लिए राजी हैं जो हिन्दुवादी संगठनों को राजयोग की भस्मी चटा सकने की कुव्व्त रखता हो। हाशिए पर पड़े गोविंदाचार्य सोनिया विरोघ के पुरोधा बनकर मिस भारती का दिल जीतना चाहते होंगे शायद। सुषमा और उमा को मलाल ये भी है कि सोनिया के विदेशी मूल के सार्थक मुद्दे को पर्याप्त तूल न दे कर और महाजन की कंप्यूटरी पंडिताई के चक्कर में पड़कर ही भाजपा की चुनाव में मिट्टी पलीद हुई, तिस पर मुरली जैसे नेता को सर चढ़ाया गया जिनकी जमानत भी न बच सकी। पार्टी के भीतर जब इतने उहापोह हों और सबसे फिट नेता के लिए डार्विनी सरवाईवल का संग्राम चल रहा हो तो खिसिया जाना कौन सी बड़ी बात है!
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