ब्लॉग जब खूब चल पड़े और चारों और इनके चर्चे मशहूर हो गये तो इसी से जुड़ा एक और तंत्र सामने आया। जिस नाम से यह पहले पहल जाना गया वह ही इसका परिचय भी बन गया। यूं तो आर.एस.एस एक तरह का क्षमल प्रारूप है और इसके बाद आर.डी.एफ, एटम यानि अणु जैसे अन्य प्रारूप भी सामने आये हैं पर आर.एस.एस एक तरह से क्षमल फीड का ही पर्याय बन गया है। जिस भी जालस्थल से आर.एस.एस फीड प्रकाशित होती है पाठक ब्लॉगलाईंस जैसे किसी न्यूज़रीडर के द्वारा बिना उस जालस्थल पर जाये उसकी ताज़ा सार्वजनिक प्रकाशित सामग्री, जब भी वह प्रकाशित हो, तब पढ़ सकते हैं। यह बात दीगर है कि जालस्थल के मालिक ही यह तय करते हैं कि फीड में सामग्री की मात्रा कितनी हो और यह कितने अंतराल में अद्यतन रखी जावेगी।
किसी भी जालस्थल की आर.एस.एस फीड होने का मतलब है कि लोग आपकी साईट बिना वहाँ आये पढ़ सकते हैं, भला कौन जालस्थल संचालक ये चाहेगा। इसे रोकने का एक तरीका तो यह हो सकता है कि आप संपूर्ण सामग्री न देकर फीड में कड़ी के साथ केवल सामग्री का सारांश प्रकाशित करें। इससे पाठक को पूरी सामग्री पढ़ने के लिये आपकी साईट पर आना ही पढ़ेगा। समाचार साईटों के लिये ये आला उपाय है जो सिर्फ समाचार शीर्षक ही प्रकाशित करें। हालांकि कालक्रम में यह पाठकों को उबा भी सकता है। दूसरा तरीका यह कि फीड में सामग्री थोड़ी ज्यादा या पूर्णतः रखी जाये पर हर प्रविष्टि के साथ विज्ञापन हों। यह तकनीक अभी इतनी परिष्कृत नहीं हुई है हालांकि गूगल एडसेंस के फीड के मैदान में उतरने के बाद माज़रा ज़रूर बदलेगा। एडसेंस की मूल भावना की तर्ज़ पर ही विज्ञापनों को टेक्स्ट या चित्र के रूप में फीड में प्रकाशित कर दिया जायेगा। तकनीक ये सुनिश्चित करेगी कि विज्ञापन का मसौदा जब पाठक फ़ीड पढ़ रहे हों तभी आनन फानन तैयार हो, बजाय इसके कि जब इसका अभिधारण हो रहा हो। सब्सक्रिप्शन आधारित सामग्री के प्रकाशन के लिये ये नये युग का सूत्रपात करेगा।
इसके अलावा भी लोग दिमाग पर ज़ोर लगा रहे हैं। आर.एस.एस फीड किसी भी साइट को बिना वहाँ जाये पढ़ना तो बायें हाथ का खेल बना देता है पर पारस्परिक व्यवहार या बातचीत का तत्व हटा देता है, संवाद दो तरफा नहीं रहता। अक्सर प्रविष्टि के साथ टिप्पणी की कड़ी तो रहती है पर टिप्पणी करनी हो तो अंततः जाना आपको साईट पर पड़ेगा ही। अब लोगों ने फीड में HTML फार्म का समावेश कर संवाद का पुट जोड़ने की कोशिश की है। स्कॉट ने अपनी फीड में यह प्रयोग किया ताकि लोग गुमनाम रहकर भी उनकी किसी भी प्रविष्टि को "टैग" कर सकें। याहू में कार्यरत रस्सेल एक कदम और आगे निकले, हाल ही में अपनी फीड में उन्होंने टिप्पणी करने का नन्हा सा HTML फार्म ही जोड़ दिया।
तकनलाजी के दीवाने आर.एस.एस के और उन्नत प्रयोगों के बारे में भी कयास लगा रहे हैं। जैसे कि इनका ऐसे ऐजेंट के रूप में प्रयोग जो समय समय पर अंतर्जाल से वांछित ताज़ी सामग्री खंगाल कर ला दे। या फिर ऐसे औज़ार के रूप में जिससे आप अपने कैलेंडर, संपर्क पते जैसी जानकारी साझा कर सकें। कल्पना कीजिये कि विभिन्न कंपनियाँ अपने उत्पादों के बारे में नवीनतम जानकारी, मूल्य सूची ईमेल के बजाय फीड से भेजें तो कितनी आसानी हो जाये। या फिर विश्वविद्यालय अपनी पाठ्य सामग्री इस तरह से भेजें। ये बातें बहुत उम्मीदें जगाती हैं। साथ में अनगिनत परेशानियाँ भी जुड़ी हैं, सिक्योरिटी और व्यक्तिगत पसंद संबंधी। क्या फीड को पासवर्ड द्वारा सुरक्षित कर या ईमेल ग्रुप की तरह किसी विशिष्ट समूह लोगों तक ही इसकी पहुँच सुनिश्चित करना मुमकिन है? आजकल के न्यूज़रीडर तो केवल सामग्री को फीड से अभिधारित कर तय प्रारूप में आप दर्शाते हैं। क्या पाठक यह तय कर सकेगा कि फीड में कौन सी जानकारी कितनी आये, कब और किस रूप में आये? क्या वह सामग्री का विश्लेषण कर पायेगा? ऐसे कई अनुत्तरित सवालों का जवाब लोग खोज रहे हैं। और मुझे लगता है कि जवाब जल्द ही आयेंगे?
1 comment:
देबाशीष,
आज कल फीडलाउंज की काफी धूम है। कड़ी यह रही
http://www.feedlounge.com/
पंकज
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