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Tuesday, June 07, 2005

सृजनात्मकता और गुणता नियंत्रण

उत्पाद चाहे कैसा भी हो गुणता यानि क्वालिटी की अपेक्षा तो रहती ही है। भारतीय फिल्मों के बारे में कुछ ऐसा लगता नहीं है। शायद इसलिये कि सफलता के कोई तय फार्मुले नहीं हैं और गुणता नियंत्रण की संकल्पना किसी क्रियेटिव माध्यम में लाना भी दुष्कर है। यह बात भी है कि जब बड़े पैमाने पर कोई फिल्म बनती है तो कुछ न कुछ कमियां तो रह जाना वाजिब है। नायिका नीले रंग की साड़ी पहन कर घर से निकले और बाज़ार में विलेन द्वारा किडनेप किये जाते वक्त साड़ी का रंग पीला हो जाये (ये कथन रंग के ताल्लुक में ही है)। नायक को चोट दायें हाथ में लगे और अगले दृश्य में पट्टी बायें हाथ पर दिखे। यह सब तो हजम करना ही पड़ता है, फिल्मों में कंटिन्युटि ग्लिच तो बड़ी आम बात है। वैसे मैंने यह कहने कि लिये लिखना शुरू किया था कि फिल्म के कुछ दूसरे विभाग भी इस से अछूते नहीं रहते।

बेनेगल की फिल्म सुभाष के संगीत को ही ले लिजिये। मैं रहमान का प्रशंसक हूं पर ईमानदारी से कहें तो उनकी आवाज़ प्लेबैक के लायक नहीं है। यह सच है कि उन्होंने अपने गानों में कई बार अनगढ़ आवाजों का प्रयोग किया है पर हर गाना तो पट्टी रैप नहीं होता न! सबसे बड़ी बात यह है कि उनका हिन्दी उच्चारण काफी खराब है (मुझे मालूम है की यह उनकी मातृभाषा नहीं है, यह बात किसी भी गैर हिन्दी गायक के लिये लागू होगी पर यह भी कहना पड़ता है कि फिर यशोदास, एस.पी.बालसुब्रमन्यम जैसे गायक यह करिश्मा कैसे कर दिखाते थे)। यहीं मुझे एहसास होता है कि काफी तरीकेवार सिनेमा निर्माण करने वाले बेनेगल ने ऐसी एपिक सागा बनाते वक्त संगीत पक्ष पर ध्यान क्यों नहीं दिया। क्या रहमान का कद निर्देशक से भी उँचा हो गया कि वे कह न सके, "अरे रहमान, यह गाना रूपकुमार राठौर से गवा लो"। हो सकता है रहमान रूठ कर बोले हों, "गाना मुझे नहीं तो संगीत ही नहीं", तो कम से कम यह तो बोला जाना चाहिये था कि ऐसा है तो हिन्दी उर्दु की ट्यूशन ले कर आवो, कम से कम "था" को "ता" तो नहीं बोलोगे। अगर रहमान फिर भी अड़े रहें कि रेमो ने "पियार टो हुना हि ता" गाया तो आप क्यों चुप थे तो मेरे ख्याल से बेनेगल यह निर्णय ले सकते थे कि रहमान को काला पानी कहाँ भेजा जाये। जब आत्ममुग्धता सृजनात्मकता पर हावी हो जाये तो गुणवत्ता की वाट तो लगनी ही है।

4 comments:

Anonymous said...

"जब *आत्मुगध्ता* सृजनात्मकता पर हावी हो जाये तो गुणता की वाट तो लगनी ही है।"

आत्ममुग्धता

debashish said...

अजनबी टिप्पणीकार जी! आपकी पारखी नज़र की वजह से कई और हिज्जों की गलतियाँ भी सुधर गयीं, धन्यवाद!

Anonymous said...

शीर्षक समेत कई और बचे हैं -

जब आत्ममुग्धता सृजनात्मकता पर हावी हो जाये तो *गुणता* की वाट तो लगनी ही है।

गुणवत्ता

debashish said...

गुमनाम जी, आपके चरण कमल कहाँ हैं? यह जानकर कि कोई इतनी बारीक़ी से मेरे लिखे को पढ़ रहा है पांव अंगद और मन गदगद हो उठा है। मेरे पिता भेल में गुणता नियंत्रण विभाग में ही कार्यरत थे अतः ये स्पेलिंग तो सही है प्रभु। संशय निवारण यहाँ से कर सकते हैं http://www.bis.org.in/hindi/qsc_hindi.htm। क्वालिटी कंट्रोल के लिये ये मानक शब्द है। यह बात सही है कि कुछ जगहों पर मुझे "गुणवत्ता" लिखना चाहिये था जैसे कि आखिरी वाक्य में।