पुणे में आईटी वालों की भरमार है। शहर भी ऐसा है कि लोग बस जाने की सोचते हैं। शहर भी आखिर कितना समोये, सो गुब्बारे की तरह फैल रहा है। वैसे यहाँ के औंध और बानेर जैसे इलाके लोगों की पहली पसंद हैं, सुविधाओं और कार्यस्थल से नज़दीक होने के कारण। चुंकि दावेदार ज्यादा हैं तो दाम सर चढ़कर बोल रहे हैं। हजारों की संख्या में नये प्रोजेक्ट आ रहे हैं। लोकल अखबारों को विज्ञापन समेटने के लिये अतिरिक्त परिशिष्ट निकालने पड़ रहे हैं। मज़े की बात यह की शहर के किसी भी कोने में बना हर अपार्टमेंट पहले से ही ७० प्रतिशत बुक्ड होता है, अब लीजिये पांचवी मंजिल का फ्लैट जहाँ टैरेस किचन में खुलता है, लिविंग रूम में नहीं। यह तो तब, जब अंटी में खासी रकम हो। मध्यम वर्गीय परिवार के लिये आस लगाये बैठने के अलावा चारा नहीं।
खैर जो बात कहना चाहता था वह रह ही गई। अपने आफिस के नज़दीक औंध जैसे अच्छे इलाके में ज्यादातर लोग आशियानां बनाना चाहते हैं। जब आप फ्लैट देखने पहूँचे तो पहली नज़र में ही लगेगा कि काफी बहुत दूर है। "अजी दूर कहाँ, ये जेनेरिक औंध हैं", बिल्डर तपाक से कहेगा। आप खुश! अभी कुछ दिन पहले अखबार में एक पाठक का पत्र पढ़ा। लिखा था, "सारी जिंदगी पुणे में बिता दी, शहर के चप्पे चप्पे से वाकिफ हूँ पर आज तक कभी औंध एनेक्स या जेनेरिक औंध नहीं देखा।" भई देखेंगे तो तब जब ये होंगे। दरअसल ये सारी मिलीभगत बिल्डरों की ही है। अब औंध से २०-२५ किमी दूर के इलाके भी इन्होंने औंध में खींचने के ईरादे से इन नये काल्पनिक नामों की रचना कर दी। शहर में नये आये लोगों को औंध से मीलों दूर का इलाका औंध के नाम पर बेचना आसान है इस तरह। बड़ा अजीब गोरखधंधा है यह। इनका बस चले तो लोनावला को भी पुणे एनेक्स पुकारने लगे कल।